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सरकारी अस्पताल के पास प्राइवेट हॉस्पिटल में लापरवाही का बोलबाला,डॉक्टर बोलीं, “घुटनों में दर्द है”, फोन पर कराया इलाज…?
खर्चा पूरा, इलाज अधूरा — डॉक्टर गायब, अनट्रेंड स्टाफ कर रहा मरीजों का इलाज, सिस्टम बना मौन दर्शक।

दौसा/सिकंदरा कस्बे में सरकारी अस्पताल के पास स्थित एक निजी (लोधी हॉस्पिटल) में गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है, जिसने न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह दिखा दिया कि आज मरीज की जान कितनी सस्ती हो चुकी है। दो दिन पहले एक महिला मरीज की तबीयत अचानक बिगड़ने पर परिजन उसे इस हॉस्पिटल में लेकर पहुंचे। वहां न कोई डॉक्टर मौजूद था, न कोई योग्य मेडिकल टीम। जब परिजनों ने स्टाफ से डॉक्टर को बुलाने की गुहार लगाई, तो चौंकाने वाला जवाब मिला मैडम के घुटनों में दर्द है, वो नहीं आ सकतीं… फोन पर बता देंगी क्या करना है।”इसके बाद डॉक्टर ने बिना मरीज को देखे, केवल फोन पर ही ड्रिप और इंजेक्शन का निर्देश दे दिया। सवाल उठता है क्या अब फोन पर इलाज से मरीज की जान बचाई जाएगी?
क्या डॉक्टर की अनुपस्थिति में अनट्रेंड स्टाफ को ड्रिप लगाने का हक है?
मरीजों के परिजनों ने तंज कसते हुए कहा — मैडम जब अपने घुटनों का इलाज नहीं करवा सकतीं, तो दूसरों की जान से खिलवाड़ क्यों कर रही हैं?” इलाज के नाम पर पैसा वसूलने वाले इस अस्पताल की लापरवाही अब लोगों की जान पर भारी पड़ रही है।जनता का कहना है कि ऐसे अस्पताल जनता की मजबूरी को लूट का जरिया बना चुके हैं बिल पूरा, इलाज अधूरा, जिम्मेदारी शून्य। सरकारी अस्पताल के पास निजी अस्पताल पर सवाल लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि सरकारी अस्पताल के ठीक पास यह निजी अस्पताल कैसे चल रहा है?
क्या इसे मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMHO) की अनुमति मिली है? क्या इसके पास क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट, 2010 के तहत लाइसेंस है? क्या फायर सेफ्टी, बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट और योग्य डॉक्टरों की उपस्थिति प्रमाणित है? अगर नहीं, तो यह पूर्णतः अवैध है और स्वास्थ्य विभाग की नाकामी का प्रतीक।
कानून के जानकार बताते हैं
बिना रजिस्ट्रेशन, बिना डॉक्टर और बिना योग्य स्टाफ के अस्पताल चलाना — क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट, 2010 का उल्लंघन,इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट का उल्लंघन,IPC धारा 336, 337, 338 (मौत का खतरा पैदा करना) और धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत अपराध है। ऐसे अस्पतालों का लाइसेंस तत्काल रद्द और सीलिंग कार्रवाई की जानी चाहिए।
जांच की मांग — जनता का आक्रोश।
स्थानीय लोगों और मरीजों के परिजनों ने प्रशासन से मांग की है कि: अस्पताल की मान्यता और लाइसेंस की जांच हो। डॉक्टरों और स्टाफ की योग्यता का सत्यापन हो। मरीजों की जान से खिलवाड़ करने पर FIR दर्ज कर निष्पक्ष जांच की जाए। अस्पताल को सील कर जनहित में कार्रवाई की जाए।
जनता की पुकार: “अब जागो सिस्टम!”मरीज इलाज के लिए जाते हैं, बहाने सुनने नहीं।अगर डॉक्टर खुद ड्यूटी पर नहीं आ सकती,तो अस्पताल चलाने का अधिकार क्यों है?” प्रशासन को यह सोचना होगा कि क्या अब स्वास्थ्य सेवा संवेदना से नहीं, बल्कि लापरवाही से चल रही है? आखिर कब तक मरीजों की जिंदगी को ऐसे अस्पताल घुटनों के दर्द के हवाले छोड़ते रहेंगे?
जब अस्पताल में डॉक्टर नहीं, स्टाफ अनट्रेंड हो, इलाज फोन पर हो — तो यह इलाज नहीं, खिलवाड़ है।अब समय आ गया है कि स्वास्थ्य विभाग जागे, ऐसे अस्पतालों की जांच हो, और मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो। क्योंकि — मरीज की जान मज़ाक नहीं, डॉक्टर का फर्ज़ भगवान बनने का है, बहाने बनाने का नहीं।
दौसा मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा:
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“अगर ऐसी लापरवाही सामने आई है तो यह गंभीर मामला है। जांच टीम भेजी जाएगी, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”