धुएं में बुझ गई जिंदगी, और राख में दब गया इंसाफ।
“फायर सिस्टम फेल, स्मोक अलार्म बेकार — मौत का खेल जारी।

एसएमएस अस्पताल हादसा — नई इमारत में पुराना सिस्टम, लापरवाही की आग ने बुझा दी 8 जिंदगियां … ब्यूरो चीफ मनोज कुमार सोनी
जयपुर जहां ज़िंदगी की आख़िरी उम्मीद जगती है, वहीं ऑक्सीजन की कमी, धुएं से घिरे वार्ड और लापरवाही ने 8 जिंदगियों की लौ बुझा दी। राजस्थान की चिकित्सा व्यवस्था पर ये हादसा नहीं, इल्ज़ाम नहीं, बल्कि शर्म की मिसाल बन गया। घटनास्थल का मंजर: चारों ओर धुआं, चीखें, और बेबसी जब आग लगी, मरीज बेड पर तड़प रहे थे। नर्सें नदारद, डॉक्टर लापता, टेक्निकल स्टाफ का कहीं अता-पता नहीं।वार्ड में घुटन इतनी कि मरीज अपनी ही ऑक्सीजन मास्क हटाने लगे। परिजन दरवाजे तोड़ रहे थे, कोई आग बुझा रहा था, कोई अपने प्रियजनों को उठा ले जाने की कोशिश में था।राजधानी का ट्रॉमा सेंटर बना “डेथ वार्ड”: धुआं, भगदड़ और गायब जिम्मेदार राजस्थान की चिकित्सा व्यवस्था का गर्व समझा जाने वाला जयपुर का सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल अब शर्म और सवालों के घेरे में है।रविवार देर रात 11 बजकर 20 मिनट पर ट्रॉमा सेंटर के न्यूरो आईसीयू वार्ड में लगी आग ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया। 8 मरीजों की मौत, दर्जनों की जिंदगी खतरे में, और सबसे बड़ा सवाल — इतने बड़े अस्पताल में आग लगी तो स्टाफ कहां था? सुरक्षा प्रणाली क्यों फेल हुई? धुआं निकलने की चेतावनी के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
⚠️ “नया बना ट्रॉमा सेंटर भी असुरक्षित” – हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
“एसएमएस का ट्रॉमा सेंटर तो नया बना है, वहां भी ऐसा हादसा हो गया…सरकारी इमारतों में आखिर सुरक्षा के नाम पर क्या हो रहा है? कहीं आग लग रही है, कहीं छत गिर रही है।”
हादसे की टाइमलाइन: 20 मिनट तक मौत की उलटी गिनती
11:00 बजे: वार्ड में हल्का धुआं दिखा, परिजनों ने स्टाफ को बताया
11:10 बजे: धुआं बढ़ा, मरीज घुटने लगे, पर कोई कार्रवाई नहीं
11:20 बजे: स्टोर रूम से आग की लपटें उठीं, अफरातफरी मच गई
11:30 बजे: वार्ड बॉय और कुछ नर्सें भाग गईं, मरीज अकेले रह गए
11:40 बजे: परिजनों ने दरवाजे तोड़े, खिड़कियों से मरीज बाहर निकाले, हमने बार-बार कहा, आग लगी है… उन्होंने कहा कुछ नहीं होगा… और फिर हमारे लोग मर गए।” — एक पीड़ित परिजन
स्टोर बना कबाड़घर, अलार्म सिस्टम सोता रहा,स्मोक डिटेक्टर ने काम नहीं किया — आग का अलार्म समय पर नहीं बजा,स्टोर रूम में रखा कबाड़ — आग को और भड़काता गया,फायर फाइटिंग सिस्टम नदारद —
स्टाफ को मैन्युअल फायर सिस्टम की जानकारी तक नहीं थी आईसीयू में 11 मरीज, बगल वाले वार्ड में 13 – पर बचाव में देरी धुएं से भरे वार्ड में ऑक्सीजन लाइन फेल, वेंटिलेटर बंद, और स्टाफ गायब। 6 मरीज अंदर ही फंस गए, बचाव दल देर से पहुंचा, वो ज़िंदा नहीं लौटे।
हादसे के 19 घंटे बाद पहली कार्रवाई:एसएमएस अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी हटाए गए ट्रॉमा सेंटर इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ को पद से हटाया गया,एक्सईएन मुकेश सिंघल निलंबित,फायर सेफ्टी एजेंसी SK इलेक्ट्रिक पर FIR के आदेश 6 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई, पर सवाल वही: क्या कमेटी से इंसाफ मिलेगा या फाइलों में दब जाएगी सच्चाई?” मुआवजा घोषित, पर जवाब नहीं सरकार ने देर शाम मृतकों के परिवारों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया।पर परिजनों का कहना है।हमें मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए।”हमारे लोग जल गए, और जिम्मेदार बच गए।”
पीड़ितों का दर्द, सरकार की चुप्पी
1. बहादुर सिंह के परिजन बोले — स्टोर में ताला लगा था, बार-बार चेताया, पर किसी ने नहीं सुना।
2. भरतपुर के शेरू ने बताया — धुआं निकलते 20 मिनट तक स्टाफ बेखबर रहा।
3. वार्ड बॉय मौके से भाग गए, परिजन खुद मरीजों को उठाकर बाहर लाए।
गृह राज्यमंत्री के सामने फूटा गुस्सा — “हमें बताया जाए कि हमारे लोग जिंदा हैं या मर गए!”
धरना, विरोध और आंसू,सुबह 8 बजे से परिजन धरने पर बैठ गए, 7 घंटे बाद सरकार ने बात सुनी। 3 बजे सहमति बनी, शाम को मुआवजा घोषित हुआ। पर भरोसा टूट चुका था।
स्वास्थ्य मंत्री का बयान और जनता का सवाल
मंत्री बोले — मरीज वेंटिलेटर पर थे, हटाते तो वैसे ही मर जाते।” जनता पूछ रही है,अगर सिस्टम सुरक्षित होता, तो क्या आग लगती? अगर अलार्म बजता, तो क्या धुआं मौत बनता? अगर स्टाफ मौजूद होता, तो क्या हम अपनों को खोते?”सिस्टम की जंग लगी हकीकत, करोड़ों की मशीनें, लेकिन मेंटेनेंस नहीं, नया भवन, पर सुरक्षा जांच नहीं, फायर सेफ्टी कॉन्ट्रैक्टर, पर जिम्मेदारी गायब, ऑक्सीजन पाइपलाइन में रिसाव, अलार्म निष्क्रिय
यह आग नहीं, सरकारी लापरवाही का आईना थी। हाईकोर्ट की सख्ती: सरकारी इमारतें बन रही हैं मौत का जाल,कोर्ट ने कहा —हर जगह आग लग रही है, छत गिर रही है, और सरकार मौन है। ये हादसे नहीं, सरकारी अपराध हैं।”
जनता की मांग: अब जांच नहीं, सजा चाहिए
1. जिम्मेदार अफसरों की गिरफ्तारी हो
2. फायर सेफ्टी कॉन्ट्रैक्टर को ब्लैकलिस्ट किया जाए
3. राज्य के सभी अस्पतालों का फायर ऑडिट तुरंत हो
4. पीड़ित परिवारों को न्यायिक जांच का अधिकार मिले
5. हर अस्पताल में नाइट शिफ्ट मॉनिटरिंग टीम बने
हर साल सरकारी अस्पतालों में धुएं में दम घुटती जिंदगियां,ऑक्सीजन की कमी से मरते मरीज,और अब वक्त है जवाबदेही तय करने का। वरना अगली बार फिर कोई अस्पताल जल उठेगा,
ये 8 मौतें सवाल छोड़ गईं:
क्या गरीब का जीवन अब सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित है?क्या हर हादसे के बाद मुआवजे से इंसाफ होगा? और कब तक इस जंग लगे सिस्टम को “ईश्वर की मर्जी” कहकर छोड़ दिया जाएगा,अब जनता की आवाज़ “जांच नहीं, न्याय चाहिए। मुआवजा नहीं, सजा चाहिए।