Blog
Trending

न्यायालय की चौखट पर आस्था का उफान – लोकतंत्र हुआ मौन, संविधान हैरान।

"धर्म की पीड़ा ने किया वार, पर न्याय की मर्यादा हुई लाचार"

चीफ जस्टिस पर हमला देश की आत्मा पर प्रहार” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

विष्णु भगवान के खिलाफ टिप्पणी से भड़की भावनाएं, कोर्ट में फेंका गया जूता, देशभर में रोष।

ब्यूरो चीफ मनोज कुमार सोनी

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था में मंगलवार को उस समय सनसनी फैल गई, जब एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर कथित रूप से विष्णु भगवान के खिलाफ की गई टिप्पणी से आहत होकर जूता फेंक दिया। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली इस घटना ने न केवल न्यायपालिका, बल्कि पूरे लोकतंत्र की आत्मा को झकझोर दिया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और कहा — “चीफ जस्टिस पर हमले से हर भारतीय नाराज है। यह सिर्फ एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि न्याय की मर्यादा पर प्रहार है।”

पीएम ने कहा कि भारत में न्यायपालिका संविधान की रक्षा करती है। किसी भी संस्था पर हमला अस्वीकार्य है। हर नागरिक को अपनी भावनाएं शांतिपूर्वक व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन हिंसा या अपमान का रास्ता कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता। जानकारी के अनुसार, कोर्ट की एक सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की एक टिप्पणी को लेकर धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। आरोपी व्यक्ति का कहना है कि “विष्णु भगवान के खिलाफ की गई टिप्पणी से वह बेहद व्यथित हुआ” और गुस्से में आकर उसने कोर्ट के अंदर जूता फेंक दिया। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को हिरासत में ले लिया। कोर्ट में अफरा-तफरी का माहौल बन गया, हालांकि चीफ जस्टिस पूरी तरह सुरक्षित हैं।

🔹 देशभर में प्रतिक्रियाएं: इस घटना के बाद देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कई सामाजिक संगठनों ने धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की अपील की है। वहीं कानून विशेषज्ञों ने कहा कि किसी भी असहमति को अदालत में हिंसा से व्यक्त करना संविधान विरोधी है। बार काउंसिल ने इस घटना को “अदालत की गरिमा पर हमला” बताया है।

🔹 प्रधानमंत्री ने कहा कि —

“भारत में हर नागरिक को अपनी बात कहने की आज़ादी है, लेकिन किसी भी संस्था या पद की गरिमा पर हमला लोकतंत्र को कमजोर करता है। न्यायपालिका की मर्यादा का सम्मान करना हर भारतीय का कर्तव्य है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सुरक्षा को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

कानूनी कार्रवाई:दिल्ली पुलिस ने आरोपी व्यक्ति को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। उस पर धारा 353 (लोक सेवक पर हमला), 295A (धार्मिक भावनाएं आहत करना) और अदालत की अवमानना जैसे गंभीर आरोप लगाए जा सकते हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार, आरोपी का उद्देश्य अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाना नहीं, बल्कि अपनी धार्मिक आस्था व्यक्त करना बताया जा रहा है।

 न्यायपालिका की गरिमा पर बहस:

इस घटना के बाद एक बार फिर देशभर में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सम्मान को लेकर बहस छिड़ गई है। कानूनी जानकारों का कहना है कि अदालतें न्याय देने की सर्वोच्च संस्थाएं हैं, इन पर हमला पूरे तंत्र पर सवाल उठाता है। पूर्व जजों ने कहा कि असहमति को अदालत की प्रक्रिया के माध्यम से ही व्यक्त किया जाना चाहिए, न कि हिंसक तरीके से।

🔹धार्मिक भावना बनाम न्यायिक स्वतंत्रता: घटना ने दो अहम सवाल खड़े किए हैं। क्या धार्मिक भावनाओं के नाम पर अदालत में अशांति फैलाना उचित है? और क्या न्यायाधीशों को धार्मिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए? विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका संविधान के तहत निर्णय लेती है, और धार्मिक आस्था का सम्मान करते हुए भी कानून की मर्यादा सर्वोपरि है। कुछ लोगों ने आरोपी की भावनाओं को समझते हुए धार्मिक संवेदनशीलता पर जोर दिया है,

जबकि बड़ी संख्या में नागरिकों ने कहा कि —  “न्यायपालिका का अपमान किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।”सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर जोरदार बहस चल रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस घटना को गंभीर मानते हुए कहा है कि अदालतों की सुरक्षा और न्यायाधीशों की सुरक्षा को और सख्त किया जाएगा।

सरकार ने लोगों से अपील की है कि किसी भी असहमति को शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से व्यक्त करें। यह घटना लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है कि भावनाओं के उफान में कानून की मर्यादा नहीं तोड़ी जा सकती।

प्रधानमंत्री मोदी का बयान देश को यह संदेश देता है कि “न्यायपालिका की मर्यादा सर्वोपरि है, और उस पर हमला किसी भी भारतीय को स्वीकार्य नहीं।” देश के नागरिकों से उम्मीद की जाती है कि वे आस्था और कानून दोनों का सम्मान करें, ताकि भारत का लोकतंत्र मजबूत और गरिमामय बना रहे।

Related Articles

Back to top button