सरकारी सीरप बना सेहत का दुश्मन, निशुल्क दवा योजना में गंभीर अनियमितताओं के आरोप, तीन वर्षीय बच्चे की हालत बिगड़ी, डॉक्टर भी चौंके!
सीरप के सैंपल जांच के लिए लैब भेजे गए — दोषियों पर कार्रवाई की मांग तेज”

हाईलाइट
1. “सरकारी सीरप से बिगड़ी बच्चे की तबीयत — डॉक्टर ने भी पी, खुद हो गए बेहोश!”
2. “मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना में गंभीर गड़बड़ी — सेहत पर भारी पड़ा सरकारी इलाज”
3. “कफ सीरप पीने के बाद बेहोशी और हार्टबीट तेज — एक ही बैच पर शक, जिलेभर में रोक”
4. “बच्चा वेंटिलेटर पर, डॉक्टर-ड्राइवर भी बीमार — स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप”
जयपुर/भरतपुर| राजस्थान की बहुचर्चित मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के अंतर्गत वितरित दवाओं पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। भरतपुर जिले के बयाना ब्लॉक के सीएचसी से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने न केवल स्वास्थ्य विभाग को हिला दिया है बल्कि पूरे प्रदेश में दवा वितरण प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिया है।
मामले के अनुसार, तीन वर्षीय बच्चे को सीएचसी से सरकारी निशुल्क दवा योजना के तहत कफ सीरप दी गई।लेकिन दवा पीने के कुछ ही समय बाद बच्चे की तबीयत अचानक बिगड़ गई उसे बेहोशी, हृदय गति तेज होने (हार्टबीट बढ़ने) और अस्वस्थता की शिकायत हुई।
बच्चे की हालत बिगड़ने पर परिजन पहले उसे महवा, फिर उसके बाद जयपुर के जेके लोन अस्पताल लेकर गए, जहाँ हालत गंभीर होने पर उसे वेंटिलेटर पर रखना पड़ा।फिलहाल बच्चे का इलाज जयपुर में जारी है।
सीरप चखने वाले डॉक्टर की भी तबीयत बिगड़ी घटना की गंभीरता तब और बढ़ गई जब सीएचसी प्रभारी डॉ. ताराचंद योगी ने स्वयं वही सीरप चखा।चंद ही पलों में उनकी भी तबीयत बिगड़ गई, और जयपुर ले जाते समय वे करीब आठ घंटे तक बेहोश रहे।उन्हें बयाना, भरतपुर जिला अस्पताल और बाद में जयपुर के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
एंबुलेंस ड्राइवर भी चक्कर और बेहोशी का शिकार
108 एंबुलेंस चालक राजेंद्र शुक्ला और 104 एंबुलेंस चालक बदन सिंह ने भी उक्त सीरप ट्राय की, जिसके बाद उन्हें भी चक्कर और बेहोशी की शिकायत हुई। अब मामला केवल एक परिवार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा भी सवालों में है।
संदेह: एक ही बैच की दवा में गड़बड़ी
ब्लॉक सीएमएचओ डॉ. धर्मेंद्र चौधरी ने बताया कि इस सीरप में Dextromethorphan Hydrobromide Salt पाया गया है, और एक विशेष बैच में गड़बड़ी की आशंका जताई जा रही है सावधानीवश उस बैच की आपूर्ति और वितरण पर भरतपुर जिले के सभी सरकारी अस्पतालों में रोक लगा दी गई है।
स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल कार्रवाई करते हुए, दवा का सैंपल लैब में भेजा है,और औषधि नियंत्रण अधिकारी को जांच सौंपी है। वहीं, प्रशासन ने राज्य स्तर पर विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं।सोशल मीडिया पर वायरल खबर से जनता में चर्चा और चिंता का विषय बना हुआ है, पूरा मामला अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।,जनता के बीच भय और भ्रम का माहौल है,
हालांकि, क्राइम इंडिया टीवी इस मामले की स्वतंत्र पुष्टि नहीं करता,परंतु खबर की गंभीरता को देखते हुए जांच की आवश्यकता स्पष्ट है।
अगर सरकारी अस्पतालों में दी जाने वाली निशुल्क दवा ही सेहत बिगाड़ने लगे, तो आम जनता भरोसा कहां करे?”कई लोग यह भी मांग कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री स्वयं मामले की समीक्षा करें, दवा वितरण प्रणाली की पारदर्शिता की जांच हो,और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
कानून विशेषज्ञों के अनुसार,
यदि किसी सरकारी आपूर्ति से वितरित दवा में हानिकारक तत्व पाए जाते हैं,तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 274 (हानिकारक दवा वितरण),धारा 337 (जान को खतरे में डालना)और औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम 1940 के तहत गंभीर अपराध है।इस स्थिति में निर्माता, आपूर्तिकर्ता और वितरण अधिकारी सभी उत्तरदायी हो सकते हैं।
“सरकारी योजना का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंदों तक निशुल्क दवा पहुँचाना है।लेकिन अगर वही दवा जान पर बन आए, तो यह सीधे-सीधे सरकारी लापरवाही है।”जनहित मे मांग उठी है कि एक स्वतंत्र जांच आयोग गठित किया जाए,जो इस सीरप की गुणवत्ता, आपूर्ति चैन और प्रयोगशाला परीक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक करे।
क्राइम इंडिया टीवी इस वायरल जानकारी की स्वतंत्र पुष्टि नहीं करते,परंतु यह मामला अत्यंत गंभीर और जनहित से जुड़ा है।इसलिए आवश्यक है कि,प्रशासन पारदर्शी जांच करे, रिपोर्ट जनता के सामने रखे, और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना गरीबों की सेहत का सहारा है,लेकिन अगर वही दवा बीमारी की जगह मुसीबत बन जाए, तो यह प्रणालीगत विफलता का संकेत है।अब वक्त है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग कठोर समीक्षा, गुणवत्ता परीक्षण, और जवाबदेही तय करें।